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रामायण जीना और भागवत सिखाती है मरना
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इंदौर. रामायण प्रभु राम का और भागवत साक्षात कृष्ण का वांगमय स्वरूप है. जीवन जीने की कला तो कई लोग सिखा रहे है, मरने की कला भागवत ही सिखाती है. जन्म के साथ मृत्यु जुड़ी हुई हैं. जिसका जन्म हुआ है, उसकी मृत्यु को कोई टाल नहीं सकता. मरना भी एक कला है. तिल-तिल कर मरने के बजाय चटपट मृत्यु ज्यादा श्रेष्ठ होती है. दूसरों को कष्ट दिये बिना आने वाली मौत ही सुखद मौत होती है. रामायण जीना और भागवत मरना सिखाती है.
वृंदावन के प्रख्यात भागवताचार्य डॉ. संजय कृष्ण सलिल ने आज गीता भवन में अग्रवाल समाज केंद्रीय समिति द्वारा उदयपुर के नारायण सेवा संस्थान के सहायतार्थ आयोजित भागवत ज्ञानयज्ञ में धुंधकारी एवं गौकर्ण प्रसंगों के दौरान उक्त प्रेरक विचार व्यक्त किए। कथा का शुभारंभ रामस्नेही संप्रदाय जोधपुर के संत हरिराम शास्त्री के सानिध्य में समाजसेवी प्रेमचंद गोयल,टीकमचंद गर्ग, अरविंद बागड़ी, राजेश बंसल, रामबिलास राठी, राजू समाधान, राजेश गर्ग, शिव जिंदल,तृप्ति गोयल,श्रीकिशन गुप्ता आदि द्वारा व्यासपीठ पूजन के साथ हुआ.
मुख्य यजमान राधेश्याम-शकुंतला बांकड़ा एवं मनोज-लीना बंसल ने संतश्री की अगवानी की. आरती में सूरजदेवी बंसल, शोभा जैन, दिलीप मेमदीवाला, महेश चायवाले सहित सैकड़ों भक्तों ने भाग लिया. बुधवार 11 जुलाई को दोपहर 3 बजे से डॉ. सलिल नरसिंह अवतार एवं अन्य प्रसंगों की कथा सुनाएंगे।
श्रवण करने के लिए किसी मुहूर्त की जरूरत नहीं
डॉ. सलिल ने कहा कि भागवत कथा का आयोजन या उसका श्रवण करने के लिए किसी मुहूर्त की जरूरत नहीं होती. शुभ संकल्प यदि मन में आ रहे हैं तो उन्हे आचरण में उतार लेने में विलंब नहीं करना चाहिए. भागवत के श्रवण से हर तरह के पाप कर्म नष्ट होते है. कामी, क्रोधी और कुटिल भी भागवत के आश्रय से सदगति प्राप्त कर लेते हैं. भागवत अनमोल और अनूठा ग्रंथ हैं जिसमें स्वयं भगवान श्रीकृष्ण का तेज समाहित है.